श्रीलंका का आर्थिक संकट बना मौका
जेवीपी के लिए 2022 का आर्थिक संकट एक सुनहरे मौके की तरह आया जब जनांदोलन के दबाव में राजपक्षे परिवार को देश छोड़कर भागना पड़ा। इस दौरान दिसानायके युवाओं के बीच एक लोकप्रिय विकल्प के रूप में उभरे। जेवीपी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए भारत ने पार्टी के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाया।
भारत ने महत्वपूर्ण रणनीति अपनाई और श्रीलंका में सभी दावेदारों से जुड़ाव बनाए रखा। नई दिल्ली ने दिसानायके को आधिकारिक यात्रा पर आमंत्रित किया, जबकि विदेश मंत्री एस जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल ने चुनावों से पहले पार्टी लाइन से हटकर श्रीलंकाई नेताओं से मुलाकात की। जेवीपी ने इसे मौके के रूप में देखा।
नई सरकार को होगी भारत की जरूरत
दिसानायके ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कई वादे किए हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए उन्हें भारत की जरूरत होगी। इसमें श्रीलंका को समुद्री केंद्र, एक बंदरगाह और व्यापार केंद्र और क्षेत्रीय रसद प्रबंधन केंद्र के रूप में विकसित करना शामिल है। दिसानायके पर्यटन और सूचना प्रौद्योगिकी राजस्व में सुधार करना चाहते हैं, जिसके लिए भी भारत महत्वपूर्ण साबित होगा।
भारत को लेकर बदला रवैया
जेवीपी भारत की चिंताओं को लेकर भी संवेदनशील है। इसके घोषणापत्र में साफ कहा गया है कि देश की भूमि, समुद्र और हवाई क्षेत्रों को किसी भी देश- खास तौर पर भारत- की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
चीन से कैसे होंगे रिश्ते
इसके साथ ही विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि नई सरकार चीन के साथ संबंधों को संतुलित करने का प्रयास करेगी। बीजिंग ने पहले ही संकेत दिया है कि वह नई सरकार की मार्क्सवादी विचारधारा का लाभ उठाने को तैयार है। चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने दिसानायके की जीत पर खुशी जाहिर की थी। नई दिल्ली आने से पहले दिसानायके ने बीजिंग का दौरा किया था।
बीजिंग के लिए अब पहले जैसा नहीं
श्रीलंका के सबसे बड़े कर्जदाताओं में से एक के रूप में बीजिंग अपना असर बढ़ाने की कोशिश करेगा, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही के वादे पर चुनाव जीतने वाली नई सरकार पर संतुलन को लेकर दबाव होगा। दिसानायके का लक्ष्य सभी विदेशी निवेशों के लिए कठोर और पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया को बढ़ावा देना और कर्ज का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना है।
अगर दिसानायके ऐसा करते हैं तो बीजिंग को यह पसंद नहीं आएगा, जिसने सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। इसके उलट यह भारत जैसे भागीदारों के लिए फायदेमंद हो सकता है, जिनकी दिलचस्पी संस्थानों को मजबूत करने और देश के शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने में है।