पद्मश्री अर्थशास्त्री डॉ. बिबेक देबरॉय का निधन:PM मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे

Updated on 01-11-2024 01:38 PM

अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय का शुक्रवार काे निधन हो गया। वे 69 साल के थे। एम्स दिल्ली की ओर से जारी बयान में कहा गया उन्हें आंतों से जुड़ी बीमारी (इंटेस्टाइन इन्फेक्शन) था। सुबह करीब 7 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित देबरॉय नीति आयोग के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने नई पीढ़ी के लिए सभी पुराणों का अंग्रेजी में आसान अनुवाद लिखा था। डॉ. देबरॉय की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के नरेन्द्रपुर में रामकृष्ण मिशन स्कूल में हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से पूरी की।

प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा- डॉ. बिबेक देबरॉय जी एक प्रखर विद्वान थे। वे अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, अध्यात्म और अन्य विविध क्षेत्रों में पारंगत थे। अपने कार्यों के माध्यम से उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। सार्वजनिक नीति में अपने योगदान के अलावा उन्हें हमारे प्राचीन ग्रंथों पर काम करने और उन्हें युवाओं के लिए सुलभ बनाने में भी आनंद आता था।

जयराम रमेश बोले- देबरॉय के पास स्पेशल स्किल थी 

जयराम रमेश ने कहा कि बिबेक देबरॉय बेहतरीन अर्थशास्त्री थे। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर काम किया। उनके पास स्पेशल स्किल थी, जिससे उनके लिखे आर्टिकल और किताबों से मुश्किल इकोनॉमिक मुद्दों को लोग आसानी से समझ लेते थे। जयराम रमेश ने लिखा कि देबरॉय को संस्कृत के सच्चे ज्ञाता के रूप में याद किया जाएगा। उनके ट्रांसलेशंस में महाभारत के 10 खंड, रामायण के 3 खंड और भागवत पुराण के 3 खंड शामिल हैं। उन्होंने भगवद्गीता और हरिवंश का भी ट्रांसलेशन किया। जयराम रमेश ने कहा, 'मैं बिबेक देबरॉय को लगभग चार दशकों से जानता था। हम सभी तरह के विषयों पर बातचीत करते थे। हाल ही में, मैंने उन्हें दो किताबें भेजी थीं, जिनके बारे में मुझे पता था कि वे उन्हें पसंद करेंगे। उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।'

देबरॉय का एकेडमिक कैरियर 1979 से शुरू हुआ 

देबरॉय ने 1979 से 1984 तक कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अपना एकेडमिक कैरियर शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पुणे में गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स जॉइन किया, जहां उन्होंने 1987 तक काम किया। इसके बाद 1987 से 1993 तक उन्होंने दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड में जिम्मेदारी संभाली। 1993 में देबरॉय वित्त मंत्रालय और यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम के एक प्रोजेक्ट के निदेशक बने। यह प्रोजेक्ट भारत के कानूनी सुधारों पर फोकस्ड था। वे 1998 तक निदेशक थे। 1994 से 1995 तक उन्होंने इकॉनोमिक अफेयर्स, 1995 से 1996 तक नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च और 1997 से 2005 तक उन्होंने राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी स्टडीज में काम किया। इसके बाद 2005 से 2006 तक उन्होंने पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में जिम्मेदारी संभाली, फिर 2007 से 2015 तक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में काम किया।

बिबेक देबरॉय के एक आर्टिकल पर विवाद हुआ था

बिबेक देबरॉय ने न्यूज वेबसाइट द मिंट में 14 अगस्त 2023 को संविधान बदलने को लेकर एक आर्टिकल लिखा था। इस पर JDU ने कहा था कि RSS के कहने पर देबरॉय ने यह आर्टिकल लिखा था। देबरॉय ने अपने आर्टिकल लिखा था कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग ने रिपोर्ट सबमिट की थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। देबरॉय ने आर्टिकल में आगे लिखा- साल 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है? संविधान में कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। अब हमें ड्रॉइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए। इस पर बात करनी चाहिए कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हमें लोगों को, खुद को एक नया संविधान देना होगा।



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